छेड़ सकता हूँ ( तीन रुबाइयां)
1. मैं अह्ले - दिल के ग़ुबारों
को छेड़ सकता हूँ !
तमाम उदास नज़ारों को
छेड़ सकता हूँ !!
मैं चुप रहा तो बुरा
मानने कि बात नहीं ;
मैं चांद और सितारों
को छेड़ सकता हूँ !!
2. तेरी नज़र के इशारों
को छेड़ सकता हूँ !
निगाहे - नाज़ के मारों
को छेड़ सकता हूँ !!
जो तेरे गेसू -ए -पुरख़म
से खेल भी न सकीं ;
उन उंगलियों से सितारों
को छेड़ सकता हूँ !!
3. मिले न फूल तो ख़ारों
को छेड़ सकता हूँ !
मैं आसमान के तारों
को छेड़ सकता हूँ !!
नये सिरे से पड़े जान
जीते मुर्दों में ;
मैं चलते - फिरते मज़ारों
को छेड़ सकता हूँ !!
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गेसू - ए -पुरख़म =पेंचदार केश
© वी. पी. सिंह
Haaya meer
30-Dec-2022 07:24 PM
👌👌
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